राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री दलितोद्धार सभा का सीधा उल्लेख सत्यार्थ प्रकाश में नहीं मिलता, लेकिन इसके सिद्धांत और आर्य समाज के विचारों के अनुसार, यह एक ऐसा मंच हो सकता है जो दलित समुदाय के उत्थान के लिए कार्य करता हो। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में जातिवाद, छुआछूत, और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया। इस विचारधारा के आधार पर, आर्य समाज ने दलित उत्थान के लिए कई सुधारवादी प्रयास किए।
जातिवाद का विरोध:
स्वामी दयानंद ने वर्ण व्यवस्था को कर्म आधारित बताया। उन्होंने जन्म के आधार पर जाति निर्धारण को अस्वीकार किया और इसे मानवता के खिलाफ बताया।
सत्यार्थ प्रकाश में उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को वेद पढ़ने, शिक्षा प्राप्त करने और यज्ञ करने का समान अधिकार है।
सामाजिक समानता:
सत्यार्थ प्रकाश और आर्य समाज के सिद्धांतों में छुआछूत को पाप माना गया। उन्होंने सभी मनुष्यों को समान मानते हुए समाज में बंधुत्व और समानता का प्रचार किया।
शूद्रों का अधिकार:
आर्य समाज ने यह स्पष्ट किया कि शूद्रों को भी वैदिक शिक्षा और धार्मिक अनुष्ठानों का अधिकार है। उनके लिए कोई धार्मिक या सामाजिक भेदभाव नहीं होना चाहिए।
वैदिक शिक्षा का प्रसार:
दलित समुदाय को शिक्षित करने के लिए आर्य समाज ने विद्यालय, गुरुकुल, और शैक्षिक संस्थान स्थापित किए ताकि वे ज्ञान और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सकें।
आर्य समाज ने दलित उत्थान के लिए निम्नलिखित कार्य किए:
शिक्षा का प्रसार:
दलितों के लिए विशेष गुरुकुल और विद्यालय खोले गए, जहाँ उन्हें समान शिक्षा दी जाती थी।
धार्मिक अधिकार:
यज्ञोपवीत और वेद पाठ का अधिकार प्रदान कर उन्हें धर्म से जोड़ने का प्रयास किया गया।
सामाजिक जागरूकता:
जाति प्रथा और छुआछूत के खिलाफ समाज में जागरूकता फैलाने के लिए प्रचार-प्रसार किया गया।
संस्कार और शुद्धिकरण आंदोलन:
स्वामी दयानंद ने "शुद्धि आंदोलन" के माध्यम से दलितों को पुनः वैदिक धर्म में स्थान दिया और उन्हें सामाजिक समानता दिलाने का प्रयास किया।
यदि आर्य दलितोद्धार सभा जैसी संस्था आर्य समाज के सिद्धांतों पर आधारित होती, तो वह निम्नलिखित कार्य करती:
शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण:
दलित समुदाय के लिए विशेष विद्यालय और प्रशिक्षण केंद्र।
आर्थिक उत्थान:
रोजगार और स्वावलंबन के लिए विशेष कार्यक्रम।
धार्मिक और सामाजिक समानता:
यज्ञ और धार्मिक आयोजनों में सभी के समान भागीदारी सुनिश्चित करना।
समाज में भेदभाव का उन्मूलन:
जातिवाद और छुआछूत जैसी प्रथाओं के खिलाफ जनजागरण।
विषय
सत्यार्थ प्रकाश
आर्य समाज के कार्य
जातिवाद
कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन, जन्म आधारित जाति का विरोध।
जातिगत भेदभाव और छुआछूत का उन्मूलन।
शिक्षा
सभी के लिए वेद अध्ययन और शिक्षा का अधिकार।
दलितों के लिए विशेष विद्यालय और गुरुकुल।
सामाजिक समानता
सभी मनुष्यों को समान अधिकार।
शुद्धि आंदोलन और धार्मिक समानता।
अंधविश्वास और कुरीतियाँ
मूर्तिपूजा, बलि और कर्मकांडों का विरोध।
तर्कशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार।
आर्य दलितोद्धार सभा भले ही सत्यार्थ प्रकाश में सीधे उल्लिखित न हो, लेकिन इसका विचार आर्य समाज के उद्देश्यों और सिद्धांतों में निहित है। यह दलित समुदाय को शिक्षा, समानता, और आत्मनिर्भरता के माध्यम से सशक्त बनाने की एक पहल हो सकती है।
आर्य समाज ने अपने समय में सामाजिक और धार्मिक सुधार लाकर एक ऐसे समाज का सपना देखा था, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले और हर प्रकार का भेदभाव समाप्त हो।