आर्य का अर्थ है "श्रेष्ठ, आदर्शवादी और वैदिक सिद्धांतों का पालन करने वाला व्यक्ति।" आर्य वह होता है जो सत्य, धर्म और ज्ञान के मार्ग पर चलता है और वेदों के अनुसार जीवन जीता है।
गुरुकुलों में पढ़कर
आर्य समाज मंदिरों में जाकर
सत्संगों और प्रवचनों में शामिल होकर
DAV स्कूलों और वैदिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर
हवन, यज्ञ और संध्या में भाग लेकर
विरोधियों से संघर्ष में सहयोग प्राप्त करके
आर्य समाजी परिवार में जन्म लेकर
आर्य समाज से जुड़े व्यक्तियों के प्रभाव में आकर
जब वे जातिगत प्रभाव में आकर यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
जब भजनोपदेशक का प्रभाव पड़ता है और भावनाओं में बह जाते हैं।
जब आर्य समाज में विवाह संपन्न होता है।
जब किसी बड़े व्यक्ति को आर्य समाज से जुड़ा देखकर प्रेरणा मिलती है।
जब DAV स्कूल या गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त होती है।
जब विरोधियों के साथ संघर्ष में आर्य समाज से सहायता मिलती है।
जब वानप्रस्थ के लिए आश्रय की आवश्यकता होती है।
जब कोई आर्य समाज में प्रमुख पद प्राप्त करना चाहता है।
सामाजिक कारण:
जातीय पहचान और पारिवारिक परंपराओं को निभाने के लिए।
बड़े व्यक्तियों या समाज के प्रभाव में आकर।
आर्य समाज की विधि से विवाह होने के कारण।
धार्मिक कारण:
मूर्तिपूजा से चिढ़ होने के कारण।
हवन, यज्ञ और संध्या करने से मिलने वाली आध्यात्मिक शांति के कारण।
भजन, प्रवचन और सत्संग में सम्मिलित होकर।
व्यक्तिगत कारण:
गुरुकुल में अध्ययन करने के कारण।
आर्य समाज में शिक्षा प्राप्त करने और पद प्राप्त करने की इच्छा।
समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए।
वानप्रस्थ में निवास स्थान प्राप्त करने के लिए।
लाठी-डंडा सीखने के लिए।
बाहरी प्रभाव से:
भजन और प्रवचनों को सुनकर भावनाओं में बहकर।
बड़े व्यक्तियों को देखकर प्रेरित होकर।
परिवार के अन्य सदस्यों के अनुसरण में।
संस्कारों के माध्यम से:
यज्ञोपवीत धारण करके।
हवन-संध्या में भाग लेकर।
आर्य समाज के रीति-रिवाजों को अपनाकर।
शिक्षा और अध्ययन से:
DAV स्कूलों और गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करके।
सत्यार्थ प्रकाश और वेदों का अध्ययन करके।
वैदिक सिद्धांतों को समझकर और उन पर अमल करके।
लाभ और आवश्यकताओं के कारण:
समाज में सम्मान पाने के लिए।
वानप्रस्थ में निवास स्थान पाने के लिए।
समाज में किसी पद (प्रधान, मंत्री) को प्राप्त करने के लिए।
केवल नाम, जाति या प्रभाव के कारण आर्य समाजी बनने से सच्चा आर्य नहीं बना जा सकता।
सत्यार्थ प्रकाश और वेदों का गहन अध्ययन आवश्यक है।
वैदिक सिद्धांतों को समझना और उन पर अमल करना अनिवार्य है।
वैदिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वाध्याय और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को अपनाना चाहिए।
सत्संग और प्रवचनों को मनोरंजन के बजाय वैदिक ज्ञान प्राप्ति का माध्यम बनाना चाहिए।
लोग विभिन्न कारणों से आर्य समाज में प्रवेश कर जाते हैं, लेकिन वे वास्तविक आर्य नहीं बन पाते।
आर्य बनने के लिए बाहरी प्रभाव या पारिवारिक परंपरा पर्याप्त नहीं है, बल्कि वैदिक ज्ञान आवश्यक है।
जो सत्यार्थ प्रकाश और वेदों को समझते हैं, वही वास्तविक आर्य बनते हैं।
आर्य बनने की एकमात्र सही प्रणाली वैदिक सिद्धांतों का ज्ञान और अनुसरण करना है।
आर्य महासंघ -राष्ट्रीय आर्य निर्मात्री सभा